मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु अज्ञान है। अज्ञानता के कारण मनुष्य विष को भी अमृत समझ कर उसका सेवन करके अपने जीवन को समाप्त कर देता है। अज्ञान के कारण ही ईश्वर और धर्म का स्वरूप विकृत हो गया, अनेक प्रकार का प्राखण्ड और अन्ध विश्वास फैल गया। वैदिक धर्म के स्थान पर महाभारत के बाद चारवाक बौद्ध, जैन, शैव, शाक्त, वैष्णव आदि सम्प्रदाय प्रचलित हो गये।
वेदों के नाम पर यज्ञों में पशु हिंसा प्रारम्भ हो गई, जिसका विरोध चारवाक – जैन-बौद्धादि सम्प्रदायों के विद्वानों ने किया, किन्तु उन्हें भी वेदों का यथार्थ ज्ञान न होने के कारण उन्होंने वेद और ईश्वर की सत्ता को न मानकर केवल जीवात्मा और प्रकृति को ही स्वीकार किया, प्रकृति और जीवात्मा की ही सत्ता मानने वाले जैन और बौद्धादि मतों का विरोध करते हुए श्री शंकराचार्य ने सिद्ध किया कि जीव और प्रकृति की नहीं अपितु ईश्वर की ही सत्ता है, किन्तु वेदों का आश्रय न लेने के कारण उन्होंने ईश्वर की सत्ता के अतिरिक्त जीव तथा प्रकृति के अस्तित्व को स्वीकार न करके संसार को स्वप्न के समान मिथ्या घोषित करके “अद्वैतवाद” के नाम से एक नया सम्प्रदाय प्रारम्भ कर दिया ।
वेदों का गहन अध्ययन करके महर्षि दयानन्द सरस्वती ने ईश्वर – जीव और प्रकृति के यथार्थ स्वरूप को स्पष्ट करके वैदिक त्रैतवाद की मान्यता प्रस्तुत की । वेदों के नाम पर प्रचलित असत्य मान्यताओं का खण्डन करके, उनका सत्य स्वरूप लोगों को समझाया। अपने उपदेश और प्रवचन से अधिक से अधिक व्यक्ति लाभान्वित हों, इसके लिए उन्होंने अपने प्रवचनों को लेखबद्ध करके पुस्तक रूप में प्रकाशित किया जिसका नाम “सत्यार्थ प्रकाश” रखा । इस ग्रन्थ को क्यों बनाया ? इसका उल्लेख करते हुए ऋषि दयानन्द ने लिखा है कि “मेरा इस ग्रन्थ को बनाने का मुख्य प्रयोजन सत्य सत्य का अर्थ प्रकाश करना है। अर्थात् जो सत्य है उसको सत्य और जो मिथ्या है उसको मिथ्या ही प्रतिपादन करना सत्य अर्थ का प्रकाश समझा है। क्योंकि सत्य उपदेश के बिना अन्य कोई भी मनुष्य जाति की उन्नति का कारण नहीं है।”
महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वेद ईश्वर और धर्म के नाम पर चलने वाली सभी मिथ्या मान्यताओं का खण्डन किया । कोई व्यक्ति खण्डन का विपरीत अभिप्राय न समझ ले इसलिए आप अपनी मान्यता को ग्रन्थ के अन्त में लिखते हैं कि “मैं अपना मन्तव्य इसी को जानता हूँ जो तीन काल में सबको एक सा मानने योग्य है। मेरी कोई नई कल्पना या मत मतान्तर चलाने का लेशमात्र भी अभिप्राय नहीं है, किन्तु जो सत्य है उसको मानना- मनवाना और जो असत्य है उसको छोड़ना – छुड़वाना मुझको अभीष्ट है।
Weight | 300 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 2 cm |
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