Vishvedeva
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वेद विद्या रूपी अपार एवं अथाह रत्नाकर का एक रत्न “विश्वे देवाः” प्रस्तुत करते हुए हमें अतीव प्रसन्नता हो रही है ।
“विश्वे देवा:” ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के १६४वें सूक्त की व्याख्या है। इस सूक्त के देवता का नाम भी विश्वे देवाः ही है ।
“विश्वे देवाः” में सृष्टि की उत्पत्ति की विशद् व्याख्या विहित है और इस व्याख्या को प्रस्तुत ग्रन्थ के रूप में विरचित करने का श्रेय हमारे सुपरिचित विद्वान् एवं मनीषी श्री गुरुदत्त जी को है।
यह श्री गुरुदत्त जी के अनवरत अध्यवसाय का ही परिणाम है कि वेद एवं वेदान्त विषयक अनेक ग्रन्थ परिषद् को प्रकाशित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । यह कार्य कितना श्रमसाध्य है, इसका अनुमान हमारे पाठक उनकी कृतियों का पारायण कर सहज ही लगा सकते हैं ।
वेद-व्याख्या विकट कार्य होने पर भी जिस सरल भाषा में यह भाव-पूर्ण रचना प्रस्तुत की गई है, इसके लिए हम श्री गुरुदत्त जी के प्रति कृतज्ञ हैं।
अन्त में हम इतना ही कहेंगे कि इस ग्रन्थ में जो कुछ अच्छा है, वह सब लेखक का है और जो कुछ त्रुटिपूर्ण है – प्रूफ संशोधन अथवा साज-सज्जा आदिउसके दोषी हम हैं, जिसके लिए हम अपने सुविज्ञ पाठकों से विनयावनत हो क्षमा याचना करते हैं। –
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